89 सूरह अल-फ़ज्र » Surah Al Fajr in Hindi
89 सूरह अल-फ़ज्र » Surah Al Fajr in Hindi
सूरह फ़ज्र » Surah Fajr : यह सूरह मक्किय्या है, | इस में आयतें : (30) | और रुकूअ : (1) । और कलिमे : (156) | और हर्फ़ : (580) | और तरतीब इ नुज़ूल : (10) | और तरतीब इ तिलावत : (89) | पारा : (30) |
सूरह फ़ज्र » Surah Fajr In Arabic
सूरह फ़ज्र - हिंदी में » Surah Fajr in hindi
अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
- वल् - फ़ज़रि
- व लयालिन् अशरिंव--
- वशफञ्जिवल्वत्रि
- वल्लैलि इज़ा यसरि
- हल फ़ी ज़ालि - क क़ - समुल्लिज़ी हिज्र
- अलम् त - र कै - फ़ फ़ - अ - ल रब्बु - क बिाद
- इर - म - ज़ातिल - अिमादि
- अल्लती लम् युख़्लक् मिस्लुहा फिल् - बिलाद
- व समूदल्लज़ी - न जाबुस्सख़् - र बिल्वादि
- व फिरऔ - न ज़िल - औताद
- अल्लज़ी न तगौ फिल् - बिलाद
- फ़ - अक्सरू फ़ीहल - फ़साद
- फ़ - सब् - ब अलैहिम् रब्बु - क सौ - त अज़ाब
- इन् - न रब्ब - क लबिल् - मिरसाद
- फ़ - अम्मल - इन्सानु इज़ा मब्तलाहु रब्बुहू फ़ - अक्र - महू व नअझ - महू फ़ - यकूलु रब्बी अक्र - मन्
- व अम्मा इज़ा मब्तलाहु फ़-क़ - द - र अलैहि रिज़्क़हू फ़ - यकूलु रब्बी -अहानन्
- कल्ला बल् - ला तुक्रिमूनल् - यती - म
- व ला तहाज़्जू - न अला तआमिल् - मिस्कीन
- व तअकुलूनत्तुरा - स अक्लल् लम्मं
- व तुहिब्बूनल् - मा - ल हुब्बन् जम्मा
- कल्ला इज़ा दुक्कतिल् - अर्जु दक्कन् दक्कंव्-
- व जा - अरब्बु - क वल्म - लकु सफ़्फन सफ़्फा
- व जी - अ यौमइज़िम् - बि - जहन्न - म यौमइज़िय्य - तज़क्करुल् - इन्सानु व अन्ना लहुग्ज़िक्रा
- यकूलु या लैतनी क़द्दम्तु लि - हयाती
- फ़यौमइज़िल - ला युअज्जिबु अज़ाबहू अ हदुंव
- व ला यूसिकु व साक़हू अ - हद
- या अय्यतुहन् - नफ़्सुल - मुत्मइन्नतु
- रजिली इला रब्बिकि राज़ि - यतम् मरज़िय्यतन
- फ़खुली फी अिबादी
- वद्खुली जन्नती
सुरह फ़ज्र » हिंदी में अनुवाद
मैं अल्लाह तआला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से
अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान व रहम वाला |
- (1) उस सुब्ह की कसम |
- (2) और दस रातों की |
- (3) और जुफ्त और ताक की |
- (4) और रात की जब चल दे |
- (5) क्यूं इस में अक्ल मन्द के लिये कसम हुई |
- (6) क्या तुम ने न देखा' |
- (7) तुम्हारे रब ने आद के साथ कैसा किया |
- (8) वोह इरम हद से ज़ियादा तूल वाले |
- (9) कि उन जैसा शहरों में पैदा न हुवा |
- (10) और समूद जिन्हों ने वादी में |
- (11) पथ्थर की चट्टानें काटी।
- (12) और फिरऔन कि चौमेखा करता (सख्त सजाएं देता) |
- (13) जिन्हों ने शहरों में सरकशी की |
- (14) फिर उन में बहुत फ़साद फैलाया |
- (15) तो उन पर तुम्हारे रब ने अज़ाब का कोड़ा ब कुव्वत मारा बेशक तुम्हारे रब की नज़र से कुछ गाइब नहीं | लेकिन आदमी तो जब उसे उस का रब आज्माए कि उस को जाह और ने'मत दे जब तो कहता है मेरे रब ने मुझे इज्जत दी और अगर आज्माए और उस का रिज्क उस पर तंग करे तो कहता है मेरे रब ने मुझे ख़्वार किया | यूं नहीं |
- (16) बल्कि तुम यतीम की इज़्ज़त नहीं करते |
- (17) और आपस में एक दूसरे को मिस्कीन के खिलाने की रगबत नहीं देते और मीरास का माल हप हप खाते हो |
- (18) और माल की निहायत महब्बत रखते हो |
- (19) हां हां जब ज़मीन टकरा कर पाश पाश कर दी जाए |
- (20) और तुम्हारे रब का हुक्म आए और फ़िरिश्ते क़ितार क़ितार और उस दिन जहन्नम लाई जाए |
- (21) उस दिन आदमी सोचेगा |
- (22) और अब उसे सोचने का वक्त कहाँ |
- (23) कहेगा हाए किसी तरह मैं ने जीते जी नेकी आगे भेजी होती तो उस दिन उस का सा अज़ाब कोई नहीं करता और उस का सा बांधना कोई नहीं बांधता |
- ऐ इत्मीनान वाली जान |
- (24) अपने रब की तरफ़ वापस हो यूं कि तू उस से राजी वोह तुझ से राजी फिर मेरे खास बन्दों में दाखिल हो और मेरी जन्नत में आ
( तर्जुमा कंजुल ईमान हिंदी )
सूरह फ़ज्र » तशरीह हिंदी में
1 : "सूरतुल फ़ज्र " سورۃ ﴝ " मक्किय्या है, इस में एक रुकूअ, उन्तीस या तीस आयतें, एक सो उन्तालीस कलिमे, पांच सो सत्तानवे हर्फ़ हैं ।
2 : मुराद इस से या यकुम मुहर्रम की सुब्ह है जिस से साल शुरूअ होता है या यकुम ज़िल हिज्जा की जिस से दस रातें मिली हुई हैं या ईदुल अज्हा की सुबह और बा'ज़ मुफस्सिरीन ने फ़रमाया कि मुराद इस से हर दिन की सुब्ह है क्यूं कि वोह रात के गुज़रने और रोशनी के ज़ाहिर होने और तमाम जानदारों के तलबे रिज्क के लिये मुन्तशिर होने का वक्त है और येह मुर्दो के कब्रों से उठने के वक्त के साथ मुशाबहत व मुनासबत रखता है।
3 : हज़रते इब्ने अब्बास رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہُمَا से मरवी है कि मुराद इन से ज़िल हिज्जा की पहली दस रातें हैं क्यूं कि येह ज़माना आ'माले हज में मश्गूल होने का ज़माना है और हदीस शरीफ़ में इस अशरे की बहुत फ़ज़ीलतें वारिद हुई हैं और येह भी मरवी है कि रमज़ान के अशरए अख़ीरा की रातें मुराद हैं या मुहर्रम के पहले अशरे की ।
4 : हर चीज़ के या उन रातों के या नमाजों के और यह भी कहा गया है कि जुफ्त से मुराद खल्क और ताक से मुराद अल्लाह तआला है।
5 : या'नी गुजरे, येह पांचवीं कसम है आम रात की, इस से पहले दस ख़ास रातों की कसम ज़िक्र फ़रमाई गई । बाज़ मुफस्सिरीन फरमाते हैं कि इस से खास शबे मुज्दलिफ़ा मुराद है जिस में बन्दगाने खुदा ताअते इलाही के लिये जम्अ होते हैं। एक कौल येह है कि इस से शबे क़द्र मुराद है जिस में रहमत का नुजूल होता है और जो करते सवाब के लिये मख्स्स है।
6 : या'नी येह उमूर अरबाबे अक्ल के नदीक ऐसी अजमत रखते हैं कि खबरों को इन के साथ मुअक्कद करना शायां है क्यूं कि येह ऐसे अजाइब व दलाइल पर मुश्तमिल हैं जो अल्लाह तआला की तौहीद और उस की रबूबिय्यत पर दलालत करते हैं और जवाबे कसम येह है कि काफ़िर ज़रूर अज़ाब किये जाएंगे, इस जवाब पर अगली आयतें दलालत करती हैं।
7 ऐ सय्यिदे आलम ! صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم |
8 : जिन के क़द बहुत दराज़ थे, उन्हें आदे इरम और आदें ऊला कहते हैं, मक्सूद इस से अहले मक्का को खौफ़ दिलाना है कि आदे ऊला जिन की उमें बहुत ज़ियादा और कद बहुत तवील और निहायत कवी और तुवाना थे उन्हें अल्लाह तआला ने हलाक कर दिया तो येह काफिर अपने आप को क्या समझते हैं और अज़ाबे इलाही से क्यूं बे खौफ़ हैं।
9 : ज़ोर व कुव्वत और तूले कामत में । आद के बेटों में से शद्दाद भी है जिस ने दुन्या पर बादशाहत की और तमाम बादशाह इस के मुतीअ हो गए और इस ने जन्नत का जिक्र सुन कर बराहे सरकशी दुन्या में जन्नत बनानी चाही और इस इरादे से एक शहरे अज़ीम बनाया जिस के महल सोने चांदी की ईटों से ता'मीर किये गए और ज़बर जद और याकूत के सुतून उस की इमारतों में नस्ब हुए और ऐसे ही फर्श मकानों और रस्तों में बनाए गए, संगरेजों की जगह आबदार मोती बिछाए गए, हर महल के गिर्द जवाहिरात पर नहरें जारी की गई, किस्म किस्म के दरख्त हुस्ने तईन के साथ लगाए गए, जब येह शहर मुकम्मल हुवा तो शद्दाद बादशाह अपने आ' याने सल्तनत के साथ उस की तरफ रवाना हुवा, जब एक मन्ज़िल फ़ासिला बाकी रहा तो आस्मान से एक होलनाक आवाज़ आई जिस से अल्लाह तआला ने उन सब को हलाक कर दिया । हज़रते अमीरे मुआविया के अह्द में हज़रते अब्दुल्लाह बिन किलाबा सहराए अदन में अपने गुमे हुए ऊंट को तलाश करते हुए उस शहर में पहुंचे और उस की तमाम जैबो जीनत देखी और कोई रहने बसने वाला न पाया, थोड़े से जवाहिरात वहां से ले कर चले आए। येह खबर अमीरे मुआविया को मालूम हुई, इन्हों ने उन्हें बुला कर हाल दरयाफ्त किया ? उन्हों ने तमाम किस्सा सुनाया । तो अमीरे मुआविया ने का'ब अहबार को बुला कर दरयाफ्त किया कि क्या दुन्या में कोई ऐसा शहर है ? उन्हों ने फ़रमाया : हां जिस का जिक्र कुरआने पाक में भी आया है, येह शहर शदाद बिन आद ने बनाया था, वोह सब अज़ाबे इलाही से हलाक हो गए, उन में से कोई बाकी न रहा और आप के जमाने में एक मुसल्मान सुर्ख रंग, कबूद चश्म, कसीरुल कामत (नीली आंखों, छोटे कद वाला) जिस की अब्रू पर एक तिल होगा, अपने ऊंट की तलाश में दाखिल होगा। फिर अब्दुल्लाह बिन किलाबा को देख कर फ़रमाया : बखुदा वोह शख्स येही है।
10 : या'नी वादियुल कुरा में |
11 : और मकान बनाए । उन्हें अल्लाह तआला ने किस तरह हलाक किया |
12 : उस को जिस पर गजब नाक होता था। अब आद व समूद व फिरऔन इन सब की निस्बत इर्शाद होता है |
13 : और मा'सियत व गुमराही में इन्तिहा को पहुंचे और अब्दिय्यत की हृद से गुज़र गए ।
14 : कुफ और कत्ल और जुल्म कर के |
15 : या'नी इज्जतो जिल्लत दौलत व फ़क्र पर नहीं, येह उस की हिक्मत है कभी दुश्मन को दौलत देता है कभी बन्दए मुख्लिस को फ़क्र में मुब्तला करता है, इज्जतो जिल्लत ताअत व मा'सियत पर है, कुफ्फार इस हकीकत को नहीं समझते
16: और बा वुजूद दौलत मन्द होने के उन के साथ अच्छे सुलूक नहीं करते और उन्हें उन के हुकूक नहीं देते जिन के वोह वारिस हैं । मुक़ातिल ने कहा कि उमय्या बिन खलफ़ के पास कुदामा बिन मज़ऊन यतीम थे, वोह उन्हें उन का हक नहीं देता था।
17 : और हलाल व हराम का इम्तियाज़ नहीं करते और औरतों और बच्चों को विरसा नहीं देते, उन के हिस्से खुद खा जाते हो, जाहिलिय्यत में येही दस्तूर था।
18 : इस को खर्च करना ही नहीं चाहते ।
19 : और उस पर पहाड़ और इमारत किसी चीज़ का नामो निशान न रहे |
20 : जहन्नम की सत्तर हज़ार बागें होंगी, हर बाग पर सत्तर हज़ार फ़िरिश्ते जम्अ हो कर उस को खींचेंगे और वोह जोश व ग़ज़ब में होगी, यहां तक कि फ़िरिश्ते उस को अर्श के बाई जानिब लाएंगे, उस रोज़ सब "नफ़्सी नफ़्सी" कहते होंगे, सिवाए हुजूरे पुरनूर हबीबे खुदा सय्यिदे अम्बिया صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم के कि हुजूर “या रब्बि उम्मती उम्मती" फ़रमाते होंगे, जहन्नम हुजूर से अर्ज करेगी कि ऐ सय्यिदे आलम मुहम्मद मुस्तफा ! صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم आप का मेरा क्या वासिता अल्लाह तआला ने आप को मुझ पर हराम किया है। (جمل)
21 : और अपनी तक़सीर को समझेगा |
22 : उस वक्त का सोचना समझना कुछ भी मुफीद नहीं।
23 : या'नी अल्लाह का सा |
24 : जो ईमान व ईकान पर साबित रही और अल्लाह तआला के हुक्म के हुजूर सरे ताअत ख़म करती रही। येह मोमिन से वक्ते मौत कहा जाएगा जब दुन्या से उस के सफर करने का वक्त आएगा।
(Tarjuma Kanzul Iman Hindi Ala Hazrat رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی)
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