92 सूरह अल-लैल » Surah Al Lail in Hindi
92 सूरह अल-लैल » Surah Al Lail in Hindi
सूरह अल-लैल » Surah Al Lail : यह सूरह मक्किय्या है, | इस में आयतें : (21) | और रुकूअ : (1) । और कलिमे : (87) | और हर्फ़ : (313) |और तरतीब इ नुज़ूल : (9) | और तरतीब इ तिलावत : (92) | पारा : (30) |
सूरह अल-लैल » Surah Al Lail In Arabic
सूरह अल-लैल - हिंदी में » Surah Al Lail in hindi
अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
- वल लैलि इज़ा यगशा
- वन नहारि इज़ा तजल्ला
- वमा खलाकज़ ज़कारा वल उनसा
- इन्ना सअ’यकुम लशत ता
- फ़ अम्मा मन अअ’ता वत तक़ा
- वसद दक़ा बिल हुस्ना
- फ़ सनुयस सिरुहू लिल युसरा
- व अम्मा मम बखिला वस तग्ना
- व कज्ज़बा बिल हुस्ना
- फ़ सनुयस सिरुहू लिल उसरा
- वमा युग्नी अन्हु मालुहू इज़ा तरददा
- इन्ना अलैना लल हुदा
- व इन्ना लना लल आखिरता वल ऊला
- फ़ अनज़र तुकुम नारन तलज्ज़ा
- ला यस्लाहा इल्लल अश्का
- अल लज़ी कज्ज़बा व तवल्ला
- व सयुजन्नबुहल अतक़ा
- अल्लज़ी युअती मा लहू यतज़क्का
- वमा लि अहदिन इन्दहू मिन निअ’मतिन तुज्ज़ा
- इल्लब तिगाअ वज्हि रब्बिहिल अअ’ला
- व लसौफ़ा यरदा
सुरह अल-लैल » हिंदी में अनुवाद
मैं अल्लाह तआला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से
अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान व रहम वाला |
- (1) और रात की कसम जब छाए' |
- (2) और दिन की जब चमके' |
- (3) और उस |
- (4) की जिस ने नर व मादा |
- (5) बनाए बेशक तुम्हारी कोशिश मुख़्तलिफ़ है |
- (6) तो वोह जिस ने दिया |
- (7) और परहेज़ गारी की |
- (8) और सब से अच्छी को सच माना |
- (9) तो बहुत जल्द हम उसे आसानी मुहय्या कर देंगे |
- (10) और वोह जिस ने बुख़्ल किया |
- (11) और बे परवाह बना |
- (12) और सब से अच्छी को झुटलाया |
- (13) तो बहुत जल्द हम उसे दुश्वारी मुहय्या कर देंगे |
- (14) और उस का माल उसे काम न आएगा जब हलाकत में पड़ेगा |
- (15) बेशक हिदायत फ़रमाना |
- (16) हमारे ज़िम्मे है और बेशक आखिरत और दुन्या दोनों के हमीं मालिक तो मैं तुम्हें डराता हूं उस आग से जो भड़क रही है न जाएगा उस में |
- (17) मगर बड़ा बद बख़्त जिस ने झुटलाया |
- (18) और मुंह फेरा |
- (19) और बहुत जल्द उस से दूर रखा जाएगा जो सब से बड़ा परहेज़ गार जो अपना माल देता है कि सुथरा हो |
- (20) और किसी का उस पर कुछ एहसान नहीं जिस का बदला दिया जाए |
- (21) सिर्फ अपने रब की रिजा चाहता जो सब से बुलन्द और बेशक करीब है कि वोह राजी होगा |
( तर्जुमा कंजुल ईमान हिंदी )
सूरह अल-लैल » तशरीह हिंदी में
1: "सूरए वल्लैल" سورۃ ﴠ "मक्किय्या है, इस में एक रुकूअ, इक्कीस आयतें, इकहत्तर कलिमे, तीन सो दस हर्फ हैं ।
2 : जहान पर अपनी तारीकी से कि वोह वक़्त है खल्क के सुकून का, हर जानदार अपने ठिकाने पर आता है और हरकत व इज्तिराब से साकिन होता है और मक़बूलाने हक़ सिद्के नियाज़ से मश्गूले मुनाजात होते हैं ।
3 : और रात के अंधेरे को दूर करे कि वोह वक्त है सोतों के बेदार होने का और जानदारों के हरकत करने का और तलबे मआश में मश्गूल होने का ।
4 : कादिर अज़ीमुल कुदरत |
5 : एक ही पानी से |
6 : या'नी तुम्हारे आ'माल जुदागाना हैं, कोई ताअत बजा ला कर जन्नत के लिये अमल करता है, कोई ना फ़रमानी कर के जहन्नम के लिये ।
7 : अपना माल राहे खुदा में और अल्लाह तआला के हक को अदा किया।
8 : मम्नूआत व मुहर्रमात से बचा |
9 : या'नी मिल्लते इस्लाम को |
10 : जन्नत के लिये और उसे ऐसी ख़स्लत की तौफ़ीक़ देंगे जो उस के लिये सबबे आसानी व राहत हो और वोह ऐसे अमल करे जिन से उस का रब राजी हो ।
11 : और माल नेक कामों में खर्च न किया और अल्लाह तआला के हक अदा न किये |
12 : सवाब और ने मते आख़िरत से |
13 : या'नी मिल्लते इस्लाम को।
14 : या'नी ऐसी ख़स्लत जो उस के लिये दुश्वारी व शिद्दत का सबब हो और उसे जहन्नम में पहुंचाए । शाने नुजूल : येह आयतें हज़रते अबू बक्र सिद्दीक " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "और उमय्या बिन खलफ़ के हक़ में नाज़िल हुई जिन में से एक हज़रते सिद्दीक " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "अत्का" हैं और दूसरा उमय्या "अश्का" उमय्या बिन खलफ़ हज़रते बिलाल " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ " को जो उस की मिल्क में थे दीन से मुन्हरिफ़ करने के लिये तरह तरह की तक्लीफें देता था और इन्तिहाई जुल्म और सख़्तियां करता था, एक रोज़ हज़रते सिद्दीके अक्बर " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "ने देखा कि उमय्या ने हज़रते बिलाल " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "को गर्म जमीन पर डाल कर तपते हुए पथ्थर उन के सीने पर रखे हैं और इस हाल में कलिमए ईमान उन की ज़बान पर जारी है, आप ने उमय्या से फ़रमाया : ऐ बद नसीब एक खुदा परस्त पर येह सख्तियां? उस ने कहा आप को इस की तक्लीफ़ ना गवार हो तो ख़रीद लीजिये, आप ने गिरां कीमत पर उन को खरीद कर आज़ाद कर दिया, इस पर येह सूरत नाज़िल हुई, इस में बयान फ़रमाया गया कि तुम्हारी कोशिशें मुख्तलिफ़ हैं या'नी हज़रते अबू बक्र सिद्दीक " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "की कोशिश और उमय्या की, और हज़रते सिद्दीक़ " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "रिजाए इलाही के तालिब हैं उमय्या हक की दुश्मनी में अन्धा |
15 : मर कर गोर (कब्र) में जाएगा या का'रे जहन्नम (जहन्नम की गहराइयों) में पहुंचेगा।
16 : या'नी हक और बातिल की राहों को वाजेह कर देना और हक पर दलाइल काइम करना और अहकाम बयान फ़रमाना |
17 : ब तीके लुजूमो दवाम |
18 : रसूल " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " को |
19 : ईमान से ।
20 : अल्लाह तआला के नज़दीक या'नी उस का खर्च करना रिया व नुमाइश से पाक है।
21 शाने नुजूल : जब हज़रते सिद्दीके अक्बर " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "ने हज़रते बिलाल " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ " को बहुत गिरां कीमत पर ख़रीद कर आज़ाद किया तो कुफ्फार को हैरत हुई और उन्हों ने कहा कि हज़रते सिद्दीक़ " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "ने ऐसा क्यूं किया, शायद बिलाल " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ " का उन पर कोई एहसान होगा जो उन्हों ने इतनी गिरां कीमत दे कर ख़रीदा और आज़ाद किया, इस पर येह आयत नाज़िल हुई और ज़ाहिर फ़रमा दिया गया कि हज़रते सिद्दीक़ " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "का येह फेल महज़ अल्लाह तआला की रिज़ा के लिये है किसी के एहसान का बदला नहीं और न उन पर हज़रते बिलाल " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ " वगैरा का कोई एहसान है । हज़रते सिद्दीके अक्बर " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ "ने बहुत से लोगों को उन के इस्लाम के सबब खरीद कर आज़ाद किया।
22 : उस ने मतो करम से जो अल्लाह तआला उन को जन्नत में अता फरमाएगा।
( Tarjuma Kanzul Iman Hindi Ala Hazrat رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی )
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