93 सूरह दुहा » Surah Ad Duha in Hindi

 93 सूरह दुहा » Surah Ad Duha in Hindi

सूरह दुहा » Surah Ad Duha : यह सूरह मक्किय्या है, | इस में आयतें : (11) | और  रुकूअ : (1) । और  कलिमे : (49) | और हर्फ़ : (164) । और तरतीब इ नुज़ूल : (11) | और तरतीब इ तिलावत : (93) | पारा : (30) |

सूरह दुहा » Surah Ad Duha In Arabic

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
وَ الضُّحٰىۙ(۱) وَ الَّیْلِ اِذَا سَجٰىۙ(۲) مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَ مَا قَلٰىؕ(۳) وَ لَلْاٰخِرَةُ خَیْرٌ لَّكَ مِنَ الْاُوْلٰىؕ(۴) وَ لَسَوْفَ یُعْطِیْكَ رَبُّكَ فَتَرْضٰىؕ(۵) اَلَمْ یَجِدْكَ یَتِیْمًا فَاٰوٰى۪(۶) وَ وَجَدَكَ ضَآلًّا فَهَدٰى۪(۷) وَ وَجَدَكَ عَآىٕلًا فَاَغْنٰىؕ(۸) فَاَمَّا الْیَتِیْمَ فَلَا تَقْهَرْؕ(۹) وَ اَمَّا السَّآىٕلَ فَلَا تَنْهَرْؕ(۱۰) وَ اَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ۠(۱۱)

सूरह दुहा - हिंदी में

अ ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम

बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम

  1. वद दुहा
  2. वल लैलि इजा सजा
  3. मा वद दअका रब्बुका वमा क़ला
  4. वलल आखिरतु खैरुल लका मिनल ऊला
  5. व लसौफ़ा युअतीका रब्बुका फतरदा
  6. अलम यजिद्का यतीमन फआवा
  7. व वजदाका दाललन फ हदा
  8. व वजदाका आ इलन फअग्ना
  9. फ अम्मल यतीमा फ़ला तक्हर
  10. व अम्मस सा इला फ़ला तन्हर
  11. व अम्मा बि निअमति रब्बिका फ हददिस 

सुरह दुहा » हिंदी में अनुवाद

मैं अल्लाह तआला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से

अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान व रहम वाला

(1) चाश्त की कसम ۩ (2) और रात की जब पर्दा डाले  ۩ (3) कि तुम्हें तुम्हारे रब ने न छोड़ा और न मकरूह जाना और बेशक पिछली तुम्हारे लिये पहली से बेहतर है ۩ (4) और बेशक क़रीब है कि तुम्हारा रब तुम्हें ۩ (5) इतना देगा कि तुम राजी हो जाओगे' ۩ (6) क्या उस ने तुम्हें यतीम न पाया फिर जगह दी ۩ (7) और तुम्हें अपनी महब्बत में खुद रफ़्ता पाया तो अपनी तरफ़ राह दी ۩ (8) और तुम्हें हाजत मन्द पाया फिर गनी कर दिया ۩ (9) तो यतीम पर दबाव न डालो ۩ (10) और मंगता को न झिडको ۩ (11) और अपने रब की ने'मत का खूब चरचा करो ۩ (12) | ( तर्जुमा कंजुल ईमान हिंदी )  

सूरह दुहा » तशरीह हिंदी में

" सूरए वद्हा " سورۃ ﴡ " मक्किय्या है, इस में एक रुकूअ, ग्यारह आयतें, चालीस कलिमे, एक सो बहत्तर हर्फ़ हैं। शाने नुजूल : एक मरतबा ऐसा इत्तिफाक हुवा कि चन्द रोज़ वही न आई तो कुफ्फार ने ब तरीके ता'न कहा कि मुहम्मद मुस्तफा " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " को उन के रब ने छोड़ दिया और मकरूह जाना इस पर " وَ الضُّحٰىۙ " नाज़िल हुई। 

2 : जिस वक्त कि आफ़्ताब बुलन्द हो क्यूं कि येह वक्त वोही है जिस में अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा "  عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ  " को अपने कलाम से मुशर्रफ़ किया और इसी वक़्त जादूगर सज्दे में गिरे । मस्अला : चाश्त की नमाज़ सुन्नत है और इस का वक्त आफ़्ताब के बुलन्द होने से क़ब्ले ज़वाल तक है, इमाम साहिब के नज़दीक चाश्त की नमाज़ दो रक्अतें हैं या चार एक सलाम के साथ । बा'ज़ मुफस्सिरीन ने फ़रमाया कि दुहा से दिन मुराद है। 

3 : और उस की तारीकी आम हो जाए । इमाम जा' फरे सादिक " رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ  " ने फ़रमाया कि चाश्त से मुराद वोह चाश्त है जिस में अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा "  عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ "  से कलाम फरमाया । बा'ज़ मुफस्सिरीन ने फ़रमाया कि चाश्त इशारा है नूरे जमाले मुस्तफ़ा " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " की तरफ़ और शब किनाया है आप के गेसूए अम्बरीन से । ( روح البیان)

4 : या'नी आख़िरत दुन्या से बेहतर, क्यूं कि वहां आप के लिये मकामे महमूद व हौजे मौरूद व खैरे मौऊद और तमाम अम्बिया व रुसुल पर तकदुम और आप की उम्मत का तमाम उम्मतों पर गवाह होना और आप की शफ़ाअत से मोमिनीन के मर्तबे और दरजे बुलन्द होना और बे इन्तिहा इज्जतें और करामतें हैं जो बयान में नहीं आतीं और मुफस्सिरीन ने इस के येह मा'ना भी बयान फ़रमाए हैं कि आने वाले अहवाल आप के लिये गुज़श्ता से बेहतर व बरतर हैं गोया कि हक़ तआला का वादा है कि वोह रोज़ बरोज़ आप के दरजे बुलन्द करेगा और इज्जत पर इज्जत और मन्सब पर मन्सब ज़ियादा फ़रमाएगा और साअत ब साअत आप के मरातिब तरक्कियों में रहेंगे। 

5 : दुन्या व आखिरत में |

6 : अल्लाह तआला का अपने हबीब " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " से येह वा'दए करीमा उन ने'मतों को भी शामिल है जो आप को दुन्या में अता फ़रमाई, कमाले नफ्स और उलूमे अव्वलीनो आखिरीन और जुहूरे अम्र और ए'लाए दीन और वोह फुतूहात जो अद्दे मुबारक में हुई और अद्दे सहाबा में हुई और ता कियामत मुसल्मानों को होती रहेंगी और  दा'वत का आम होना और इस्लाम का मशारिक व मगारिब में फैल जाना और आप की उम्मत का बेहतरीन उमम होना और आप के वोह करामात व कमालात जिन का अल्लाह ही आलिम है, और आख़िरत की इज्ज़तो तक्रीम को भी शामिल है कि अल्लाह तआला ने आप को शफ़ाअते आम्मा व ख़ास्सा और मकामे महमूद वगैरा जलील ने मतें अता फ़रमाई । मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है : नबिय्ये करीम " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " ने दोनों दस्ते मुबारक उठा कर उम्मत के हक़ में रो कर दुआ फ़रमाई और अर्ज़ किया Au" अल्लाह तआला ने जिब्रील अमीन को हुक्म दिया कि मुहम्मद (मुस्तफ़ा " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم ") की ख़िदमत में जा कर दरयाफ्त करो रोने का क्या सबब है, बा वुजूदे कि अल्लाह तआला दाना है, जिब्रीले अमीन ने हस्बे हुक्म हाज़िर हो कर दरयाफ़्त किया। सय्यिदे आलम " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم "ने उन्हें तमाम हाल बताया और गमे उम्मत का इज़हार फ़रमाया। जिब्रीले अमीन ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ किया कि तेरे हबीब येह फ़रमाते हैं, बा वुजूदे कि वोह खूब जानने वाला है। अल्लाह तआला ने जिब्रील अमीन को हुक्म दिया जाओ और मेरे हबीब (" صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم ") से कहो कि हम आप को आप की उम्मत के बारे में अन्क़रीब राजी करेंगे और आप को गिरां ख़ातिर न होने देंगे, हदीस शरीफ़ में है कि जब येह आयत नाज़िल हुई सय्यिदे आलम " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " ने फ़रमाया कि जब तक मेरा एक उम्मती भी दोज़ख़ में रहे मैं राजी न होउंगा । आयते करीमा साफ़ दलालत करती है कि अल्लाह तआला वोही करेगा जिस में रसूल राजी हों और अहादीसे शफ़ाअत से साबित है कि रसूल " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " की रिज़ा इसी में है कि सब गुनहगाराने उम्मत बख़्श दिये जाएं, तो आयत व अहादीस से कई तौर पर येह नतीजा निकलता है कि हुजूर की शफ़ाअत मक़बूल और हस्बे मरज़िये मुबारक गुनहगाराने उम्मत बख़्शे जाएंगे, " سُـبْحانَ الله " क्या रुत्बए उल्या है कि जिस परवर्दगार को राजी करने के लिये तमाम मुकर्रबीन तक्लीफें बरदाश्त करते और मेहनतें उठाते हैं, वोह इस हबीबे अकरम " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم "को राजी करने के लिये अता आम करता है। इस के बाद अल्लाह तआला ने उन ने'मतों का ज़िक्र फ़रमाया जो आप के इब्तिदाए हाल से आप पर फ़रमाई । 

7 : सय्यिदे आलम " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " अभी वालिदए माजिदा के बर्तन में थे, हम्ल दो माह का था कि आप के वालिद साहिब ने मदीनए शरीफ़ा में वफ़ात पाई और न कुछ माल छोड़ा, न कोई जगह छोड़ी, आप की ख़िदमत के मुतकफ्फिल आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब हुए, जब आप की उम्र शरीफ़ चार या छ साल की हुई तो वालिदा साहिबा ने भी वफ़ात पाई, जब उम्र शरीफ़ आठ साल की हुई तो आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब ने भी वफ़ात पाई, उन्हों ने अपनी वफ़ात से पहले अपने फ़रज़न्द अबू तालिब को जो आप के हक़ीकी चचा थे आप की ख़िदमत व निगरानी की वसिय्यत की। अबू तालिब आप की ख़िदमत में सरगर्म रहे, यहां तक कि आप को अल्लाह तआला ने नुबुव्वत से सरफ़राज़ फ़रमाया। इस आयत की तफ्सीर में मुफस्सिरीन ने एक मा'ना येह बयान किये हैं कि यतीम ब मा'ना यक्ता व बे नज़ीर के है जैसे कि कहा जाता है : "दुरे यतीमा" । इस तक़दीर पर आयत के मा'ना येह हैं कि अल्लाह तआला ने आप को इज्जो शरफ़ में यक्ता व बे नज़ीर पाया और आप को मकामे कुर्ब में जगह दी और अपनी हिफ़ाज़त में आप के दुश्मनों के अन्दर आप की परवरिश फ़रमाई और आप को नुबुव्वत व इस्तिफा (चुनने) व रिसालत के साथ मुशर्रफ़ किया ।  ( خازن و جمل وروح البیان )

8 : और गैब के असरार आप पर खोल दिये और उलूमे " ما كان وما یکون " अता किये, अपनी ज़ात व सिफ़ात की मा'रिफ़त में सब से बुलन्द मर्तबा इनायत किया। मुफस्सिरीन ने एक माना इस आयत के येह भी बयान किये हैं कि अल्लाह तआला ने आप को ऐसा वारफ़्ता पाया कि आप अपने नफ्स और अपने मरातिब की खबर भी नहीं रखते थे तो आप को आप के जातो सिफ़ात और मरातिबो दरजात की मा'रिफ़त अता फ़रमाई । मस्अला : अम्बिया " عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ " सब मासूम होते हैं नुबुव्वत से कब्ल भी, नुबुव्वत से बाद भी और अल्लाह तआला की तौहीद और उस के सिफ़ात के हमेशा से आरिफ़ होते हैं। 

9 : दौलते कनाअत अता फरमा कर । बुखारी व मुस्लिम की हदीस में है कि तवंगरी करते माल से हासिल नहीं होती, हकीकी तवंगरी नफ़्स का बे नियाज़ होना । 

10 : जैसा कि अहले जाहिलिय्यत का तरीका था कि यतीमों को दबाते और उन पर जियादती करते थे। हदीस शरीफ़ में सय्यिदे आलम " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " ने फ़रमाया : "मुसल्मानों के घरों में वोह बहुत अच्छा घर है जिस में यतीम के साथ अच्छा सुलूक किया जाता हो और वोह बहुत बुरा घर है जिस में यतीम के साथ बुरा बरताव किया जाता है।" 

11 : या कुछ दे दो या हुस्ने अख़्लाक़ और नरमी के साथ उज़ कर दो। येह भी कहा गया है कि साइल से तालिबे इल्म मुराद है, उस का इक्राम करना चाहिये और जो उस की हाजत हो उस का पूरा करना और उस के साथ तुर्शरूई व बद खुल्की न करना चाहिये। 

12 : ने' मतों से मुराद वोह ने मतें हैं जो अल्लाह तआला ने अपने हबीब " صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم " को अता फ़रमाई और वोह भी जिन का हुजूर से वा'दा फ़रमाया । ने'मतों के ज़िक्र का इस लिये हुक्म फ़रमाया कि ने'मत का बयान करना शुक्र गुज़ारी है। (Tarjuma Kanzul Iman Hindi  Ala Hazrat  رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی)

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